आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन यादो मे

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दोस्तों आपने मेरी पिछली पोस्ट में देखा था ऐसे छोटे छोटे बच्चो को जिन्हें जहा भी जगह मिली वाही सो गए इसी बचपन में खोकर एक बहुत ही सुन्दर कविता में पोस्ट कर रहा हू आप भी देखे इस कविता को क्या पता आपको भी अपना बचपन याद आ जाये

आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन यादो मे

टेन्शन का जहाँ नाम नही ओर मारना मस्ती दिन भर
मम्मी रोज डाटती फिर भी पहुचना ड्रेस गन्दी करके घर
कल पैट दर्द, आज कान दर्द अब कल तो हे मामा के जाना
होमवर्क किया नही फिर खोजा रोज नया बहाना
इनटरवल मे खेलने के लिए पिरीयड मे ही पूरा लंच खा जाना
छुपअम छुपाई खेलने के वक्त बार बार थप्पा हम पर ही आना
पच्चीस पैसे की पोकेट मनी भी लगती थी जैसे अपार
आजकल तो कम ही पडते, चाहे जेब मे हो पच्चास हजार
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

खरीदते हे नयी ड्रेस आज हम जब भी हो जाना बाजार
वो दिन ओर थे जब होता था नई ड्रेस के लिए दिवाली का इंतजार
ब्राड की इस दूनिया मे किसे चुने कौन है बेहतर
पर शादी मे सबसे अच्छा वो मम्मी के हाथ का बुना स्वाटर
चोबीस घंटे नोनस्टोप म्यूजीक सुनकर अब होते है बोर
आधे घंटे के चित्रहार का जब मजा ही था कुछ ओर
आज पूरा कार्टून नेटर्वक भी नही मन मेरा बहला सकता
वो सन्डे का दिन ओर मै हीमैन और मोगली की रहा तकता
केबल का जमाना नही था होता था मोहल्ले मे एक ही टीवी
इनवीटेशन आता था उस घर से जब भी वीसीआर पे लगती थी मूवी
चाचा चौधरी, बिल्लू और पिंकी से थी अपनी असली दोस्ती
कि छुटिया आते ही उनसे मिलने को लग जाती जैसे धूंध सी
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

रोड पर बिजली का तार अब हमे जो गंदगी हे लगता
बनाते थे घरोंदा उस मिटृी मे जब पडोस मे कोई मकान था बनता
बारीश मे भिगने का मजा लेते थे दोस्तो के साथ
आज भिगने का डर इतना कि बारीश मे निकलता एक ही हाथ
वो पहली साईकल लाईफ की लगती थी हमको कितनी प्यारी
जो गर्व करते थे उस पर आज नही वो होने पर भी गाडी
वो छूट्‌टीयो मे जाना मामा के घर हर साल
ओर जुलाई मे स्कूल खुलने पर होना फिर से वो ही बूरा हाल
आज इनटरनेट पर पढ़ते है जोक्स किताबो मे मिलती कहानी
वो कहानी आज भी याद है जो सूनी थी दादा जी की जुबानी
मारते ठाहके थे पहले जहा उन छोटी छोटी बातो पे
आज तरसते है देखने को छोटी सी एक मूस्कान होठो पे
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

आज सोचता हु मै ये कि लोट कर आ जाये वो दिन
क्यो बडा होता है इन्सान क्यो नही रहते हमेशा वो बचपन के दिन
ना कोई सोच ना कोई टेन्सन ना ही जीवन की कोई उलझन
सिम्पल सी एक लाईफ हो उमर चाहे फिर हो जाये पच्चपन
मिलेगा मोका वो दिन फिर जीने का अब की कहता है मेरा ये मन
सुना है मेने कि बुढापे मे फिर से लोट आता है बचपन

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9टिप्पणियाँ

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  1. बहुत सुन्दर!! बचपन की याद फिर से ताजा हो गई आपकी ये रचना पढ़कर।संयोग से आज मैं भी अपने बचपन के बारे मे ही सोच रहा था..कि उस समय कितना मजा था जीवन मे। मस्ती ही मस्ती थी बस।
    एक अच्छी व मोहक रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

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  2. प्रिय बंधुवर मयंक भारद्वाज जी
    नमस्कार !

    बचपन की बहुत सारी यादें आपकी कविता की वजह से ताज़ा हो गईं , अच्छी स्वस्थ रचना के लिए आभार ! बधाई !

    …लेकिन बंधु , टंकण त्रुटियां तसल्ली से दुरुस्त कर लिया करें ।

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. आज जब हमे सब कुछ बिना किसी प्रयास के मिल रहा है इसलिए इन सारी सुविधाओ का कोई खास महत्व हमारे जीवन में नहीं राह गया है, stone boy नाम का धारावाहिक हर रविवार को आता था, और जब उसका समय शुरू होता था, तब हमारे एरिया की बिजली चली जाती थी, तब हम काफी दूर किसी और के घर उसे जा कर देखते थे, बड़ी उत्सुकता और बहुत मज़ा आता था तब.

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  4. मयंक भाई,
    आप के इस कविता को पढ़ के आज एक बार फिर बचपन कि याद ताज़ा हो गयी|

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  5. मेने अपनी ये पोस्ट इसलिए लिखी थी ताकि इसे पढकर आपको भी अपना बचपन याद आ जाये मेरा ये प्रयास सफल रहा मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है

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  6. बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! मैं तो अपने बचपन के दिनों में चली गयी! उम्दा प्रस्तुती!

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  7. Mayank Bhai Please utorrent ka use kaise kare aur window xp ka setup kaise free mai download kare plase batao. aur apne jo utoorent ka post diya hai wo open hi nahi hota hai. Please reply me
    Navang.d@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
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