हिंदी टेक गुरु के सभी नए, पुराने और रोज आने वाले नए नए पाठको को मयंक भारद्धाज की तरफ से होली की रंग बिरंगी बधाई
होली के मोके पर आपके लिए होली की एक कहानी फेसबुक से कॉपी पेस्ट करके दे रहा हु आप भी एन्जॉय करे होली की स्टोरी का
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की।
माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा।
हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
मुझे बचपन की होली अब भी याद आती है होली के एक दिन पहले चलते हुवे राहगीरों पर खूब पानी के गुब्बारे मार कर छुप जाना और जब खेलने वाली होली होती है तो मेरे मन में बस एक ही प्लान चला करता था। की ऐसी जगह छुपुंगा की कोई देख भी नहीं पायेगा और ना ही कोई रंग लगा पायेगा। आज बड़ा होने के बाद भी होली के दिन मैं अपने घर पर नहीं रहता बल्कि ऐसी जगह चला जाता हु जहा कोई मुझे रंग न लगा पाये पिछले 2 साल से मैं एक ऐसी जगह जाता हु जहा हर साल होली पर बहुत ही बड़ा मेला लगता है होली वाले दिन वहा कोई भी होली नहीं खेलता और जो खेलते है उन्हें हम जैसे राहगीरों से कोई मतलब नहीं होता ये जगह हमारे हरिद्धार से 102 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश में है इस जगह का नाम है Paonta Sahib जिसके फोटो आप यहाँ क्लिक करके भी देख सकते हो अगर कभी आप ऐसी जगह की तलाश करे जहा होली के दिन बहुत बड़ा मेला लगता हो और कोई होली भी न खेलता हो तो आपके लिए ये एक बेहतरीन जगह हो सकती है मेरी नजर में होली की छुटियाँ बिताने की सबसे अच्छी जगह है ये
वैसे मैं जनता हु बहुत ही कम लोग होते है जो होली ना खेलते है जहां दुसरे त्योहारो मनाना या न मनाना आदमी की मर्जी पर होता है, वही होली कोई चाहे या न चाहे उसे खेलनी ही होती थी। यदि किसी ने डरकर घर मे छिपने की कोशिश की तो दरवाजा पीट पीट कर कई बार तो दरवाजा तोड़ कर होली खेलने के लिए निकाला जाता था। फिर एक साथ सब लोग एक व्यक्ति पर टूट पडते थे। जिस तरह लोग दशहरे पर जाने के लिए विशेष कपडे दस दिन पहले से ही तैयार करा लेते थे उसी प्रकार होली के लिए भी फटे-पुराने कपडे पहले से छांट लिए जाते है ऐसे कपडे देखकर बर्तन वाला भी जिन्हे देखकर दूर से हांथ जोड ले।
होली मे अपना पराया कोई नही देखा जाता। बल्कि शिकार का इंतजार किया जाता है। शिकार का मतलब दूसरे मोहल्ले से गुजरने वाले व्यक्ति। शिकार मिलते ही लोग उस पर झपटते। वह हाथ जोडकर अपनी मजबूरी बताता लेकिन कोई उसके उपर रहम न करता और उसे पकडकर काले सफेद रेग से रंग दिया जाता रंग ऐसे होते है कि एक हफ्ते तक भी आपका साथ न छोडे यह ही होती है होली की धमाचोकडी हर तरफ रंग ही रंग होता है।
आपकी जिंदगी की हर होली आपकी जिंदगी में बहुत सारी रंग बिरंगी खुशिया लाये तो इन्जॉय करे रंग बिरंगी होली का मिलते है होली के बाद.......... चलते चलते आपके लिए होली का 2 बेहतरीन सांग छोड़ कर जा रहा हु जिन्हे देख कर आप भी अपनी होली का मजा चार गुणा करे
होली के मोके पर आपके लिए होली की एक कहानी फेसबुक से कॉपी पेस्ट करके दे रहा हु आप भी एन्जॉय करे होली की स्टोरी का
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की।
माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा।
हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
मुझे बचपन की होली अब भी याद आती है होली के एक दिन पहले चलते हुवे राहगीरों पर खूब पानी के गुब्बारे मार कर छुप जाना और जब खेलने वाली होली होती है तो मेरे मन में बस एक ही प्लान चला करता था। की ऐसी जगह छुपुंगा की कोई देख भी नहीं पायेगा और ना ही कोई रंग लगा पायेगा। आज बड़ा होने के बाद भी होली के दिन मैं अपने घर पर नहीं रहता बल्कि ऐसी जगह चला जाता हु जहा कोई मुझे रंग न लगा पाये पिछले 2 साल से मैं एक ऐसी जगह जाता हु जहा हर साल होली पर बहुत ही बड़ा मेला लगता है होली वाले दिन वहा कोई भी होली नहीं खेलता और जो खेलते है उन्हें हम जैसे राहगीरों से कोई मतलब नहीं होता ये जगह हमारे हरिद्धार से 102 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश में है इस जगह का नाम है Paonta Sahib जिसके फोटो आप यहाँ क्लिक करके भी देख सकते हो अगर कभी आप ऐसी जगह की तलाश करे जहा होली के दिन बहुत बड़ा मेला लगता हो और कोई होली भी न खेलता हो तो आपके लिए ये एक बेहतरीन जगह हो सकती है मेरी नजर में होली की छुटियाँ बिताने की सबसे अच्छी जगह है ये
वैसे मैं जनता हु बहुत ही कम लोग होते है जो होली ना खेलते है जहां दुसरे त्योहारो मनाना या न मनाना आदमी की मर्जी पर होता है, वही होली कोई चाहे या न चाहे उसे खेलनी ही होती थी। यदि किसी ने डरकर घर मे छिपने की कोशिश की तो दरवाजा पीट पीट कर कई बार तो दरवाजा तोड़ कर होली खेलने के लिए निकाला जाता था। फिर एक साथ सब लोग एक व्यक्ति पर टूट पडते थे। जिस तरह लोग दशहरे पर जाने के लिए विशेष कपडे दस दिन पहले से ही तैयार करा लेते थे उसी प्रकार होली के लिए भी फटे-पुराने कपडे पहले से छांट लिए जाते है ऐसे कपडे देखकर बर्तन वाला भी जिन्हे देखकर दूर से हांथ जोड ले।
होली मे अपना पराया कोई नही देखा जाता। बल्कि शिकार का इंतजार किया जाता है। शिकार का मतलब दूसरे मोहल्ले से गुजरने वाले व्यक्ति। शिकार मिलते ही लोग उस पर झपटते। वह हाथ जोडकर अपनी मजबूरी बताता लेकिन कोई उसके उपर रहम न करता और उसे पकडकर काले सफेद रेग से रंग दिया जाता रंग ऐसे होते है कि एक हफ्ते तक भी आपका साथ न छोडे यह ही होती है होली की धमाचोकडी हर तरफ रंग ही रंग होता है।
आपकी जिंदगी की हर होली आपकी जिंदगी में बहुत सारी रंग बिरंगी खुशिया लाये तो इन्जॉय करे रंग बिरंगी होली का मिलते है होली के बाद.......... चलते चलते आपके लिए होली का 2 बेहतरीन सांग छोड़ कर जा रहा हु जिन्हे देख कर आप भी अपनी होली का मजा चार गुणा करे
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
रंगों और उमंगों के साथ दुनिया के अनेक ढंगों की चर्चा बढ़िया रही !
जवाब देंहटाएंSir Aapko Bhi Holi Ki Hardik Subhkamnayen
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