दोस्तों आज सोमवार का दिन है तो सोच रहा हू आपको नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन करा दू जहा आप लोग गए तो होंगे पर ठीक से नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन नहीं कर पाए होंगे आज में आपको नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन करवाऊंगा आज में अपने ब्लॉग पर नीलकण्ठ महादेव जी के ऐसे फोटो दे रहा हू जो आपको कभी नहीं मिलेंगे आप इन फोटो को अपने मंदिर में भी लगा सकते है
एक नजर यहाँ पर भी डाले
अलादीन के चिराग वाला चिन्न हुक्म करो मेरे आका.
भगवान की प्रतिज्ञा
मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,
तेरे सब मार्ग न खोल दुँ तो कहना॥
मेरे लिए खर्च करके तो देख,
कुबेर के भंडार न खोल दुँ तो कहना॥
मेरे लिए कडवे वचन सुनकर तो देख,
कृपा न बरसे तो कहना॥
मेरी तरफ आ के तो देख,
तेरा ध्यान न रखूं तो कहना॥
मेरी बाते लोगो से करके तो देख,
तुझे मुल्यवान न बना दुँ तो कहना॥
मेरे चरित्रों का मनन करके तो देख,
ज्ञान के मोती तुझमें न भर दुँ तो कहना॥
मुझे अपना मददगार बना के तो देख,
तुम्हें सबकी गुलामी से न छुडा दुँ तो कहना॥
मेरे लिए आँसू बहा के तो देख,
तेरे जीवन में आंनद के सागर न बहा दुँ तो कहना॥
मेरे लिए कुछ बन के तो देख,
तुझे कीमती न बना दुँ तो कहना॥
मेरे मार्ग पर निकल कर तो देख,
तुझे शान्तिदूत न बना दुँ तो कहना॥
स्वयं को न्यौछावर करके तो देख,
तुझे मशहूर न कर दुँ तो कहना॥
मेरा कीर्तन करके तो देख,
जगत का विस्मरण न करा दुँ तो कहना॥
तु मेरा बन के तो देख,
हर एक को तेरा न बना दुँ तो कहना॥
श्री नीलकण्ठ महादेव जी का इतिहास
अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओ ने समुद्र मंथन के द्वारा उत्पन्न प्रसिद्व कालकूट नामक विष को पीकर मणिकूट पर्वत के मूल मे स्थित भगवान श्री नीलकण्ठ जी है, जो भक्तों का कल्याण करने वाले हैं।
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के पहुचने का मार्ग निम्न है।
ऋषिकेश तथा लक्ष्मण झूला के मध्य में गंगा जी के पूर्वी भाग में स्थित पर्वत का नाम मणिकूट है। इसी मणिकूट पर्वत के अग्नि पार्श्व में स्वयंम्भू लिंग के रूप में श्री नीलकण्ठ महादेव जी विराजमान है।
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के मन्दिर जाने के लिये लक्ष्मण झूला के पास आपको बहुत गाडी मिलेगी जिसके द्वारा आप बहुत ही कम समय मे नीलकण्ठ पहुँच जाओगे। अगर आप पैदल जाना चाहते हो तो स्वर्गाश्रम के उत्तरी पार्श्व से एक मार्ग जाता है, इस मार्ग से आगे जाने पर पर्वत की तलहटी से लगा हुआ समतल मार्ग चिल्लाह-कुन्हाव को जाता है। उसी मार्ग पर डेढ किलोमीटर चलने पर एक पहाडी झरना आता है। उस झरने को पार करते ही उस मार्ग को छोड़कर बायीं ओर मुड जाना पडता है। वहां पर तीर के निशान सहित श्री नीलकण्ठ महादेव जी के नाम का बोर्ड लगा हुआ है। तीर के निशान द्वारा उसी दिशा की ओर आगे बढ कर श्री नीलकण्ठ महादेव जी का वास्तविक मार्ग आरम्भ होता है।
इस मार्ग पर डेढ किलोमीटर आगे चलने पर नीचे की ओर स्वर्गाश्रम, लक्ष्मण झूला एवं गंगा जी का द्रश्य बहुत सुन्दर दिखाई देता है। लगभग दो किलोमीटर आगे चलने पर पानी का एक छोटा सा तालाब आता है इसमे पहाडी से पानी हर समय बूंद बूंद निकलता रहता है इसमे बारहों महीने पानी रहता है। इसको बीच का पानी कहते है। यह पानी स्वर्गाश्रम तथा श्री नीलकण्ठ महादेव जी के मध्य मे माना जाता है यहाँ से दो किलोमीटर आगे चलने पर पानी की टंकी आती है। यहॉ पर चाय की दुकान रहती है यहां थोडा विश्राम कर लेना चाहिये। अब चढ़ाई समाप्त हो गई है। यहां से लगभग २०० मीटर की दूरी चलने पर पर्वतों के शिखरो के परस्पर मिलने से बने हुए एक छोटे से मैदान में पहुंच जाते हैं। यहां खडे होने पर बांई ओर मणिकूट पर्वत, दाहिनी ओर विष्णुकूट पर्वत ओर सम्मुख ब्रह्मकूट पर्वत के शिखर पर श्री भुवनेश्वरी पीठ एवं तीनो पर्वतों के संधिमूल में श्री नीलकण्ठ महादेव जी दिखाई देते है।
गंगा जी के प्रवाह से मणिकूट पर्वत की उंचाई ४५०० फिट है। मणिकूट पर्वत से लगभग १५०० फिट नीचाई पर श्री नीलकण्ठ महादेव जी का मन्दिर है।
अब कीजिये श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन
आपको श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन करना केसा लगा बताइयेगा जरुर
एक नजर यहाँ पर भी डाले
अलादीन के चिराग वाला चिन्न हुक्म करो मेरे आका.
भगवान की प्रतिज्ञा
मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,
तेरे सब मार्ग न खोल दुँ तो कहना॥
मेरे लिए खर्च करके तो देख,
कुबेर के भंडार न खोल दुँ तो कहना॥
मेरे लिए कडवे वचन सुनकर तो देख,
कृपा न बरसे तो कहना॥
मेरी तरफ आ के तो देख,
तेरा ध्यान न रखूं तो कहना॥
मेरी बाते लोगो से करके तो देख,
तुझे मुल्यवान न बना दुँ तो कहना॥
मेरे चरित्रों का मनन करके तो देख,
ज्ञान के मोती तुझमें न भर दुँ तो कहना॥
मुझे अपना मददगार बना के तो देख,
तुम्हें सबकी गुलामी से न छुडा दुँ तो कहना॥
मेरे लिए आँसू बहा के तो देख,
तेरे जीवन में आंनद के सागर न बहा दुँ तो कहना॥
मेरे लिए कुछ बन के तो देख,
तुझे कीमती न बना दुँ तो कहना॥
मेरे मार्ग पर निकल कर तो देख,
तुझे शान्तिदूत न बना दुँ तो कहना॥
स्वयं को न्यौछावर करके तो देख,
तुझे मशहूर न कर दुँ तो कहना॥
मेरा कीर्तन करके तो देख,
जगत का विस्मरण न करा दुँ तो कहना॥
तु मेरा बन के तो देख,
हर एक को तेरा न बना दुँ तो कहना॥
श्री नीलकण्ठ महादेव जी का इतिहास
अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों और देवताओ ने समुद्र मंथन के द्वारा उत्पन्न प्रसिद्व कालकूट नामक विष को पीकर मणिकूट पर्वत के मूल मे स्थित भगवान श्री नीलकण्ठ जी है, जो भक्तों का कल्याण करने वाले हैं।
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के पहुचने का मार्ग निम्न है।
ऋषिकेश तथा लक्ष्मण झूला के मध्य में गंगा जी के पूर्वी भाग में स्थित पर्वत का नाम मणिकूट है। इसी मणिकूट पर्वत के अग्नि पार्श्व में स्वयंम्भू लिंग के रूप में श्री नीलकण्ठ महादेव जी विराजमान है।
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के मन्दिर जाने के लिये लक्ष्मण झूला के पास आपको बहुत गाडी मिलेगी जिसके द्वारा आप बहुत ही कम समय मे नीलकण्ठ पहुँच जाओगे। अगर आप पैदल जाना चाहते हो तो स्वर्गाश्रम के उत्तरी पार्श्व से एक मार्ग जाता है, इस मार्ग से आगे जाने पर पर्वत की तलहटी से लगा हुआ समतल मार्ग चिल्लाह-कुन्हाव को जाता है। उसी मार्ग पर डेढ किलोमीटर चलने पर एक पहाडी झरना आता है। उस झरने को पार करते ही उस मार्ग को छोड़कर बायीं ओर मुड जाना पडता है। वहां पर तीर के निशान सहित श्री नीलकण्ठ महादेव जी के नाम का बोर्ड लगा हुआ है। तीर के निशान द्वारा उसी दिशा की ओर आगे बढ कर श्री नीलकण्ठ महादेव जी का वास्तविक मार्ग आरम्भ होता है।
इस मार्ग पर डेढ किलोमीटर आगे चलने पर नीचे की ओर स्वर्गाश्रम, लक्ष्मण झूला एवं गंगा जी का द्रश्य बहुत सुन्दर दिखाई देता है। लगभग दो किलोमीटर आगे चलने पर पानी का एक छोटा सा तालाब आता है इसमे पहाडी से पानी हर समय बूंद बूंद निकलता रहता है इसमे बारहों महीने पानी रहता है। इसको बीच का पानी कहते है। यह पानी स्वर्गाश्रम तथा श्री नीलकण्ठ महादेव जी के मध्य मे माना जाता है यहाँ से दो किलोमीटर आगे चलने पर पानी की टंकी आती है। यहॉ पर चाय की दुकान रहती है यहां थोडा विश्राम कर लेना चाहिये। अब चढ़ाई समाप्त हो गई है। यहां से लगभग २०० मीटर की दूरी चलने पर पर्वतों के शिखरो के परस्पर मिलने से बने हुए एक छोटे से मैदान में पहुंच जाते हैं। यहां खडे होने पर बांई ओर मणिकूट पर्वत, दाहिनी ओर विष्णुकूट पर्वत ओर सम्मुख ब्रह्मकूट पर्वत के शिखर पर श्री भुवनेश्वरी पीठ एवं तीनो पर्वतों के संधिमूल में श्री नीलकण्ठ महादेव जी दिखाई देते है।
गंगा जी के प्रवाह से मणिकूट पर्वत की उंचाई ४५०० फिट है। मणिकूट पर्वत से लगभग १५०० फिट नीचाई पर श्री नीलकण्ठ महादेव जी का मन्दिर है।
अब कीजिये श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन
श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन
nilkanth mahadev |
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आपको श्री नीलकण्ठ महादेव जी के दर्शन करना केसा लगा बताइयेगा जरुर
मैंने ये देखा हुआ है फिर भी सुन्दर चित्रों के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbhut achi picture hai..vese mujhe kisi ne kaha tha ki aaj shivratri hai par mujhe lga ki shivratri to feb me aati hati....
जवाब देंहटाएंsir maine khabi nahi dekha sir bhaut acchi picture hain
जवाब देंहटाएंJai Bam-Bhole
जवाब देंहटाएंbahut achchhi tasviren hain. dhanywad.
जवाब देंहटाएंmayank ji bahut bahut aabhar.. vijayadashmi ki shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंBhole Baba Ke Darsan Karane Ke Liye Dhanyabad "Bam-Bam-Bhole"
जवाब देंहटाएंmayankji aap ko dushere ki hardik shubkamna.aap ne bhagvan neelkanth ji ke manmohak swarup ke ghar bethe dharshan ke leye dhanyvad
जवाब देंहटाएंnice very nice
जवाब देंहटाएंआनंदम् ...
जवाब देंहटाएंVERY NICE
जवाब देंहटाएंOM NAMAS SIVAAY
जवाब देंहटाएंधन्य हो आप
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